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President को राष्ट्रपति कहें या राष्ट्रपत्नी? संविधान बनाते समय भी हुई थी यह बहस, जानिए तब क्या हुआ

Rashtrapatni Remark Controversy: देश के President यानी राष्ट्रपति के पद पर महिला के चुने जाने पर उसे राष्ट्रपति कहा जाए या राष्ट्रपत्नी, यह बहस एक बार फिर से शुरू हो गई है.

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President को राष्ट्रपति कहें या राष्ट्रपत्नी? संविधान बनाते समय भी हुई थी यह बहस, जानिए तब क्या हुआ

राष्ट्रपति या राष्ट्रपत्नी पर फिर शुरू हुई बहस

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डीएनए हिंदी: राष्ट्रपति चुनाव (President Elections) में जीत के बाद अब द्रौपदी मुर्मू अब देश की 15वीं राष्ट्रपति बन गई हैं. कांग्रेस नेता अधीर रंजन चौधरी (Adhir Ranjan Chowdhury) की ओर से द्रौपदी मुर्मू (Droupadi Murmu) को 'राष्ट्रपत्नी' कहे जाने पर विवाद खड़ा हो गया है. हालांकि, अधीर रंजन चौधरी ने इस पर माफी भी मांगी है लेकिन यह विवाद एक बार फिर से चर्चा में आ गया है कि किसी महिला के राष्ट्रपति बनने पर उसे राष्ट्रपति ही कहा जाए या महिलाओं के लिए 'राष्ट्रपत्नी' (Rashtrapatni) जैसे संबोधनों का इस्तेमाल किया जाए. आपको बता दें कि यह चर्चा आजादी के बाद भारत का संविधान बनाते समय भी हुई थी लेकिन आखिरी फैसला 'राष्ट्रपति' के पक्ष में ही हुआ.

द्रौपदी मुर्मू को 'राष्ट्रपत्नी' कहे जाने के मुद्दे पर बीजेपी ने अधीर रंजन चौधरी पर चौतरफा हमला बोल दिया है. इतना ही नहीं राष्ट्रीय महिला आयोग (NCW) ने भी अधीर रंजन को नोटिस भेजा है और व्यक्तिगत तौर पर पेश होकर जवाब देने को कहा है. बीजेपी अधीर रंजन चौधरी को महिला विरोधी बता रही है. आपको बता दें कि देश के इतिहास में द्रौपदी मुर्मू दूसरी ऐसी महिला हैं जो राष्ट्रपति के पद पर पहुंची हैं. इससे पहले, कांग्रेस के शासनकाल में प्रतिभा देवी सिंह पाटिल देश की पहली महिला राष्ट्रपति बनी थीं.

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लैंगिक समानता से जुड़ा है यह मुद्दा
राष्ट्रपति या राष्ट्रपत्नी या कोई तीसरा ऐसा संबोधन जो जेंडर न्यूट्रल हो, यह बहस आज की नहीं है. आजादी के समय संविधान बनाते समय भी इस पर जमकर चर्चा और बहस हुई. दरअसल, 'पति' यानी अंग्रेजी में Husband तो पुरुष होता है, इसी शब्द से जोड़कर यह माना जाता है कि राष्ट्रपति का मतलब हुआ कोई पुरुष. ऐस में महिला के इस पद पर आ जाने पर उसे संबोधित करने के लिए 'राष्ट्रपति' कहना कई व्यक्तियों को अटपटा लगता है और तभी यह बहस शुरू होती है. महिला अधिकार कार्यकर्ताओं का मानना है कि 'राष्ट्रपति' जैसा शब्द जेंडर न्यूट्रल नहीं है और यह पितृसत्ता वाली सोच को बढ़ावा देता है.

संविधान सभा

दरअसल, भारत में 'राष्ट्रपति' शब्द अंग्रेजी के President शब्द का अनुवाद माना गया है. 2007 से 2012 तक देश की राष्ट्रपति रहीं प्रतिभा देवी सिंह पाटिल के राष्ट्रपति बनने पर यह समस्या पहली बार प्रैक्टिकल रूप में सामने आई. हालांकि, उन्हें 'राष्ट्रपति' शब्द से कोई ऐतराज नहीं था ऐसे में इस नाम में बदलाव या उस पर चर्चा की भी कोई ज़रूरत नहीं समझी गई. इस मामले में द्रौपदी मुर्मू ने अभी अपनी कोई राय नहीं दी है कि वह इससे सहमत हैं या नहीं.

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संविधान सभा में भी उठा था मामला
आजादी के बाद जब देश का संविधान बन रहा था, तब यह काम भारत के लोगों के ही जिम्मे था. डॉ. भीमराव आंबेडकर की अगुवाई में संविधान सभा की बैठकें होती थीं और तमाम मुद्दों पर चर्चा होती थी. उस समय भी यह मुद्दा उठा कि अगर कोई महिला देश की राष्ट्रपति बनती है तो उसे 'राष्ट्रपति' कैसे कहा जा सकता है? विकल्प के तौर पर 'नेता', 'कर्णधार', 'राष्ट्र प्रधान' और 'राष्ट्राध्यक्ष' जैसे शब्द सामने आए. विकल्प देने वाले सदस्यों का मानना था कि ये शब्द जेंडर न्यूट्रल हैं और 'राष्ट्रपति' शब्द की तरह समान अर्थ भी रखते हैं. 

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हालांकि, उस समय देश के प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू इस बात पर सहमत नहीं हुए. प्रधानमंत्री के सहमत न होने की वजह से President शब्द के हिंदी अनुवाद के रूप में 'राष्ट्रपति' शब्द को मान्यता दे दी गई. संविधान के अनुच्छेद 52 के तहत राष्ट्रपति पद सृजित किया गया है. इसी के मुताबिक, राष्ट्रपति को देश का प्रथम नागरिक माना जाता है.

अमेरिका में हुई थी 'मिस्टर' और 'मिसेज' की बहस
ऐसी समस्या सिर्फ़ भारत के साथ ही नहीं हुई है. अमेरिका में जब हिलेरी क्लिंटन राष्ट्रपति पद के लिए चुनाव लड़ रही थीं तब यह चर्चा उठी कि अगर वह चुनाव जीत जाती हैं तो क्या 'मिस्टर प्रेसिडेंट' की तरह उन्हें 'मिसेज प्रेसिडेंट' कहा जाएगा? हालांकि, इस शब्द पर सहमति नहीं बनी क्योंकि 'मिसेज प्रेसिडेंट' कहे जाने पर उनकी वैवाहिक स्थिति पता चलती है.

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ठीक इसी तरह का मामला भारत में महिला अधिकारियों या अन्य पदों पर महिलाओं की नियुक्ति पर भी आती है. उदाहरण के लिए, सिविल सेवा के अधिकारियों को उनके जूनियर्स की ओर से 'सर' कहकर संबोधित किया जाता है. महिलाओं को 'मैडम सर' कहकर संबोधित किया जाता है. नारीवादियों का मानना है कि इस तरह का संबोधन हर दिन महिलाओं को यह याद दिलाता है कि वे पुरुष सत्तात्मक समाज में काम कर रही हैं.

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