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गुजरात विधानसभा चुनाव: इन सीटों पर जीत-हार तय करते हैं मुस्लिम वोटर्स, कितनी मजबूत है सूबे में सियासी पकड़?

Gujarat Assembly Election 2022: गुजरात में मुस्लिम उम्मीदवारों को टिकट देने में राजनीतिक पार्टियां कम दिलचस्पी दिखाती हैं. जानिए वजह.

गुजरात विधानसभा चुनाव: इन सीटों पर जीत-हार तय करते हैं मुस्लिम वोटर्स, कितनी मजबूत है सूबे में सियासी पकड़?

गुजरात में आबादी के लिहाज से मुस्लिम समुदायक का राजनीतिक प्रतिनिधित्व कम रहा है. (फाइल फोटो-PTI)

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डीएनए हिंदी: गुजरात (Gujarat Election 2022) की सियासत में चुनाव आते-आते ध्रुवीकरण एक अहम फैक्टर बन जाता है. मुस्लिम समुदाय के नेता अक्सर यह कहते नजर आते हैं कि उनकी राज्य में आबादी 10 फीसदी है लेकिन राजनीति में प्रतिनिधित्व बेहद कम है. मुस्लिम समुदाय (Muslim Voters) आर्थिक और सामाजिक तौर पर यहां अन्य जगहों की तुलना में ज्यादा समृद्ध है लेकिन राजनीतिक तौर पर नहीं.

यह स्थिति तब है जब 25 विधानसभा सीटों पर मुस्लिम वोटर्स निर्णायक भूमिका निभाते हैं. गुजरात की 182 विधानसभा सीटों 25 सीटे ऐसी हैं, जहां मुस्लिम वोटर निर्णायक भूमिका निभाते हैं. ये ऐसी सीटें हैं, जहां मुस्लिम वोटर जीत-हार तय करने कमें अहम भूमिका निभाते हैं.

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9.67 फीसदी वोटर लेकिन राजनीतिक प्रतिनिधित्व कम

अगर सटीक आंकड़ों की बात करें तो गुजरात में करीब 9.67 फीसदी वोटर हैं. करीब 30 सीटें ऐसी हैं जहां अगर सामूहिक तौर पर मुस्लिम वोटरों का साथ मिल जाए तो नतीजे जीत या हार में बदल सकते हैं. 

आबादी के लिहाज से मुस्लिम प्रतिनिधित्व कम है. मुस्लिम उम्मीदवारों के चुनाव जीतने की सफलता दर भी कम रही है. साल 2017 के विधानसभा चुनाव में केवल 4 मुस्लिम प्रत्याशी ही जीत सके थे. ऐसा नहीं था कि सिर्फ ये सीटें मुस्लिम बाहुल थीं, इसलिए ही जीत मिली. दरअसल फैक्टर यह था कि इन्हें टिकट कांग्रेस ने दिया था. 

कांग्रेस उम्मीदवारों को हिंदूओं के भी वोट मिले थे. मुस्लिम समुदाय की एकजुट वोटिंग के बाद इन्हें सफलता मिल गई थी. इस चुनाव में मुस्लिम फैक्टर के अलावा दूसरे फैक्टर भी प्रभावी रहे हैं.

कब सबसे ज्यादा रहा है मुस्लिमों का प्रतिनिधित्व?

साल 1980 में मुस्लिम समुदाय का प्रतिनिधित्व सबसे ज्यादा था. इस साल करीब 12 मुस्लिम उम्मीदवार विधायक बने थे. 60 साल में अब तक सिर्फ 61 मुस्लिम उम्मीदवार ही विधायक बन पाए हैं. साल 2017 में मुस्लिम बाहुल 25 में 17 विधानसभा सीटों पर भारतीय जनता पार्टी ने जीत दर्ज की थी. 8 सीटें कांग्रेस के हिस्से में आई थीं.

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कांग्रेस ने साल 2017 में कुल 6 मुस्लिम उम्मीदवारों को टिकट दिया था. 2017 में बीजेपी ने किसी भी मुस्लिम उम्मीदवार को टिकट नहीं दिया था. बीजेपी ने 1998 में एक मुस्लिम उम्मीदवार को टिकट दिया था. गुजरात के 26 सांसदों में से एक भी मुस्लिम सांसद नहीं है. कांग्रेस के दिग्गज नेता अहमद पटेल ही आखिरी मुस्लिम सांसद थे.

गुजरात में कितना अहम है मुस्लिम फैक्टर?

गुजरात में मुस्लिम समुदाय की आबादी 10 फीसदी है. 25 सीटें ऐसी हैं, जहां मुस्लिम वोटर्स बेहद निर्णायक भूमिका निभाते हैं. 20 सीटे हैं ऐसी हैं, जहां 20 प्रतिशत तक मुस्लिम आबादी रहती है. 15 फीसदी मुस्लिम आबादी वाली सीटें 30 है. अहमबादाब में मुस्लिम बाहुल 4 सीटे हैं. भरूच में मुस्लिम बाहुल सीटें 3 हैं. कच्छ में मुस्लिम बाहुल सीटों की संख्या 3 है. 2017 में कुल 4 मुस्लिम उम्मीदवार जीते थे.

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मुस्लिम प्रतिनिधित्व के ऐसे रहे हैं आंकड़े-

1.
साल 1980 में कुल 17 मुस्लिम उम्मीदवार चुनावी समर में उतरे थे लेकिन जीत केवल 12 सीटों पर मिली थी. यह गुजरात में मुस्लिम प्रतिनिधित्व ऐतिहासिक आंकड़ा था.

2.  1985 में कुल 11 मुस्लिम उम्मीदवार चुनाव लड़े थे. जीत केवल 8 लोगों को मिली थी.

3.  1990 में 11 मुस्लिम उम्मीदवारों ने चुनाव लड़ा था लेकिन जीत केवल 2 लोगों को मिली थी

4.  1995 में 1 मुस्लिम उम्मीदवार उतरा था, जिसे जीत मिली थी.

5. 1998 में कुल 9 मुस्लिम उम्मीदवार चुनाव लड़े थे. इनमें से एक उम्मीदवार बीजेपी के टिकट पर लड़ा था. वह चुनाव हार गया था. 5 मुस्लिम उम्मीदवारों को जीत मिली थी.

6. 2002 में कुल 6 मुस्लिम उम्मीदवार चुनाव लड़े थे लेकिन जीत केवल 3 लोगों को मिली थी.

7. 2007 में 6 मुस्लिम उम्मीदवार चुनावी मैदान में थे. जीत 5 लोगों को मिली थी. 

8. साल 2007 के विधानसभा चुनाव में 6 मुस्लिम उम्मीदवार उतरे थे लेकिन जीत 5 लोगों को मिली थी.

9. साल 2017 में कुल 5 मुस्लिम उम्मीदवारों ने चुनाव लड़ा था लेकिन जीत केवल 2 सीटों पर मिली थी.

क्यों कम है सत्ता में मुस्लिम समुदाय का राजनीतिक प्रतिनिधित्व?

गुजरात की सत्ता में मुस्लिम समुदाय का राजनीतिक प्रतिनिधित्व बेहद कम है. मुस्लिम उम्मीदवारों को टिकट देने में राजनीतिक पार्टियां कतराती हैं. कांग्रेस तो इन सीटों पर मुस्लिम कैंडीडेट उतार भी देती है लेकिन बीजेपी एकदम परहेज करती है. वजह साफ है कि मुस्लिम समुदाय के साथ दूसरे हिंदू समुदाय साथ आने से कतराने लगते हैं. गुजरात में पाटीदारों की तरह मजबूत सियासी पकड़ मुस्लिम समुदाय की नहीं है.

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