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UP Election 2022: न जनसभा, न रैली, यूपी चुनाव के लिए खामोश क्यों नजर आ रहीं हैं Mayawati?

बसपा सुप्रीमो मायावती पहले की तरह एक्टिव कैंपेनिंग करती नजर नहीं आ रही हैं. वे ट्विटर पर ही मौजूदा सरकार और विपक्षी पार्टियों को घेर रही हैं.

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UP Election 2022: न जनसभा, न रैली, यूपी चुनाव के लिए खामोश क्यों नजर आ रहीं हैं Mayawati?

BSP Chief Minister Mayawati. (File Photo-PTI)

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डीएनए हिंदी: बहुजन समाज पार्टी की अध्यक्ष मायावती इन दिनों सार्वजनिक सभाओं से दूर नजर आ रही हैं. जहां समाजवादी पार्टी (SP), कांग्रेस (Congress), राष्ट्रीय लोकदल (RLD) और भारतीय जनता पार्टी (BJP) जैसी पार्टियां अभी से चुनावी समर में उतर चुकी हैं, मायावती रैलियां करती नजर नहीं आ रही हैं. आखिरी बार मायावती अक्टूबर में एक जनसभा करतीं नजर आईं थीं वहीं दूसरी विपक्षी पार्टियों ने एक के बाद एक कई रैलियां की हैं.

मायावती ने इस दौरान एक-दो प्रेस कॉन्फ्रेंस जरूर कीं लेकिन वो जमीन पर नहीं उतरीं. दूसरी राजनीतिक पार्टियां इसी का लाभ उठाती नजर आ रही है. उत्तर प्रदेश में वैसे तो मायावती की जमीनी पकड़ तब से ही कमजोर पड़ने लगी जब से सपा का नेतृत्व अखिलेश यादव ने संभाला. 2012 में जब अखिलेश यादव मुख्यमंत्री बने तब से ही मायावती का प्रदर्शन लगातार खराब होता जा रहा है. 2017 के चुनाव में हालात और भी खराब हो गए.

यूपी में दलित वोटरों की संख्या 20 से 21 फीसदी तक है. ओबीसी वोटर 42 से 45 फीसदी तक हैं. आंकड़ों पर गौर करें तो 2007 में 30.43 फीसदी दलित वोटर मायावती के साथ थे. 2012 में 25.9 फीसदी दलित वोटरों ने बसपा को वोट दिया. 2017 में बड़ी गिरावट आई और महज 23 प्रतिशत दलित वोटरों ने मायावती का साथ दिया. मायावती का गिरता जनाधार लगातार उनके लिए मुश्किलें पैदा कर रहा है. जमीन पर उनका न उतरना उनकी पार्टी को और कमजोर कर रहा है.

UP Election 2022 Mayawati BSP vs SP Congress BJP Akhilesh Yadav

हर चुनाव में खिसकती जा रही है मायावती की सियासी जमीन

साल 2017 के विधानसभा चुनावों में भारतीय जनता पार्टी सत्ता आई. 2012 में 224 सीटों वाली सपा 47 सीटों पर सिमट गई. कांग्रेस के साथ हुआ सपा का गठबंधन कामयाब नहीं हुआ. कांग्रेस दहाई का आंकड़ा भी नहीं छू सकी थी और महज 7 सीटों पर सिमट गई थी. बीजेपी ने 312 सीटें हासिल कर लीं. बसपा के खाते में आईं महज 19 सीटें. यह मायावती का सबसे खराब प्रदर्शन था. साल 2007 में 206, 2012 में 80, 2017 में 19 सीटों पर सिमटना यह स्पष्ट संकेत था कि मायावती का कोर दलित वोट बैंक खिसक रहा है. अखिलेश दलित, यादव और मुस्लिम समीकरणों को साधने में सफल हो गए थे. मायावती दलित वोटरों का समर्थन हासिल करने में असफल रही थीं. सवर्ण और ओबीसी समुदाय से भी मायावती को समर्थन नहीं मिला. एक बार फिर मायावती के सक्रिय न होने से उनके समर्थक परेशान नजर आ रहे हैं.

कहां हो रही है मायावती से चूक?

साल 2019 के लोकसभा चुनावों में भले ही मायावती की पार्टी को 10 लोकसभा सीटों पर कामयाबी मिली हो लेकिन यह सच है कि ऐसा सिर्फ सपा के साथ गठबंधन की वजह से हुआ था. सपा की वजह से ओबीसी और मुस्लिम वोटर बसपा के साथ शिफ्ट तो हो गए लेकिन बसपा के कोर वोटर सपा के पक्ष में नहीं आए. यही वजह है कि खुद सपा 5 सीटों पर सिमट गई. मायावती यूपी में सबसे बड़ी राजनैतिक चूक कर रही हैं. मायावती को दलित वर्ग का सबसे बड़ा नेता देश स्तर पर माना जाता है. दलित वोटरों में मायावती को लेकर क्रेज भी है. लेकिन राजनीतिक समीकरण सिर्फ एक वर्ग का ध्यान रखकर नहीं हासिल किया जाता. दूसरे वर्गों को लुभाने में मायावती फेल हो रही हैं. 

सिर्फ ट्विटर पर एक्टिव नजर आ रही हैं मायावती!

यूपी में विधानसभा चुनाव जल्द होने वाले हैं. 2022 के सियासी समर के लिए दूसरी पार्टियों ने अपनी कमर कस ली है. प्रियंका गांधी, अखिलेश यादव, जयंत सिंह और असदुद्दीन ओवैसी जैसे नेता जहां रैलियों के लिए जी-जान लगा रहे हैं, वहीं मायावती रैलियों से दूर भागती नजर आ रही हैं. मायावती की सक्रियता सोशल मीडिया तक सिमट गई है. योगी सरकार के खिलाफ विपक्षी नेता जमीन पर उतर रहे हैं लेकिन मायावती सिर्फ सोशल मीडिया के जरिए ही अपनी राजनीति कर रही हैं. यह वोटरों की नाराजगी की एक बड़ी वजह बन सकती है.   

बसपा छोड़कर जा रहे नेताओं ने बढ़ाई मुश्किलें

विधानसभा चुनाव 2022 से पहले मायावती की पार्टी बसपा के 100 से ज्यादा पदाधिकारी जयंत चौधरी की पार्टी राष्ट्रीय लोक दल में शामिल हो गए हैं. लोगों को भी मायावती का सक्रिय राजनीतिक से दूर होना रास नजर नहीं आ रहा है. बसपा चुनावों से पहले बड़ी चूक करती नजर आ रही है.

23 दिसंबर की बैठक के बात चुनावी रणनीति तैयार करेंगी मायावती

बसपा चीफ मायावती ने 23 दिसंबर को लखनऊ स्थित पार्टी मुख्यालय पर एक बैठक बुलाई है. मायावती की इस बैठक में राज्य के सभी मुख्य सेक्टर प्रभारियों के साथ-साथ सभी 75 जिलों के जिलाध्यक्षों को भी बुलाया गया है. मायावती इस रैली में फैसला कर सकती हैं कि कब से राज्यव्यापी रैलियों की शुरुआत होने वाली है. राजनीति के जानकार सवाल खड़े कर रहे हैं कि अभी तक की चुप्पी कहीं मायावती का सियासी खेल न बिगाड़ दे.

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